धान की सीधी बिजाई से ग्रीनहाउस गैसों का करीब 35 प्रतिशत उत्सर्जन होगा कम
करनाल : डॉ. प्रमोद तोमर एच.एफ.पी.सी. फार्मर्स प्रोडयूसर आर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया (एफ.पी.ओ.) किसान समूह की प्रशिक्षण कार्यशाला में प्रगतिशील किसानों का मार्गदर्शन करते हुए।

करनाल, 25 जून। कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के बासमती निर्यात विकास प्रतिष्ठान मोदीपुरम-मेरठ (बीईडीएफ) के वैज्ञानिक डॉ. प्रमोद तोमर ने कहा कि बासमती धान के क्षेत्र में धान की सीधी बिजाई तकनीक (डी.एस.आर.) अपनाने पर जोर दिया जा रहा है। पंजाब व हरियाणा में जब किसानों के समक्ष लेबर व पानी की समस्या आई तो इस तकनीक की ओर अग्रसर हुए। यह तकनीक कई समस्याओं का समाधान है।
इससे ग्लोबल वार्मिंग के दौर में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन 30 से 35 प्रतिशत तक कम होता है। पानी की 25 से 30 प्रतिशत तक बचत होती है। डॉ. प्रमोद तोमर ने बुधवार को सेक्टर-12 स्थित जाट भवन के कांफ्रैंस हाल में एच.एफ.पी.सी. फार्मर्स प्रोडयूसर आर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया (एफ.पी.ओ.) किसान समूह की प्रशिक्षण कार्यशाला में प्रगतिशील किसानों का मार्गदर्शन किया। उन्होंने कहा कि डी.एस.आर. से बकानी रोग की संभावना कम होती है।
किसी भी तकनीक की खूबियां हैं तो कुछ समस्याएं भी सामने आती हैं। जिनको लेकर जागरूकता के साथ समय पर प्रबंधन करना है। एक किलो चावल पैदा करने में 3000 लीटर से अधिक पानी की खपत हो रही है। लेजर लेवलिंग से पानी बचता है। एक हैक्टेयर में यदि 1 सैंटीमीटर पानी खड़ा करते हैं तो एक लाख लीटर पानी चाहिए। जबकि किसान रोपाई विधि की धान के खेत में पांच से छह इंच तक पानी खड़ा करते हैं। बासमती धान की दो प्रजातियां डी.एस.आर. के लिए अनुशंसित की गई हैं।
पंजाब में तरबतर विधि से डी.एस.आर. करते हैं और हरियाणा व पश्चिमी उत्तरप्रदेश में सूखी बुआई करते हैं। डी.एस.आर. में 35 दिन पर खेत में पाटा प्रैक्टिस करनी चाहिए। उन्होंने किसानों को मित्रकीटों व शत्रु कीटों की पहचान बताई। कीट प्रबंधन के प्राकृतिक तरीके बताए ताकि रसायन का इस्तेमाल न हो। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष देश से 7 लाख टन बासमती चावल निर्यात हुआ जिससे 50 हजार करोड़ से ज्यादा विदेशी मुद्रा अर्जित हुई। पैस्टीसाइड के अंश आने से चावल की विदेशों में मांग पर फर्क पड़ता है।
चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र उचानी-करनाल के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. ओ.पी. चौधरी ने एफ.पी.ओ. की कार्यप्रणाली की प्रशंसा की। उन्होंने किसानों को स्वयं की घरेलू खपत के लिए सब्जियां व फल उगाने की सलाह दी ताकि बचत हो। रिसर्च एनालिटिक्स एंड मॉडलिंग लीड्स कनैक्ट प्रतिष्ठान के निदेशक डॉ. अलोक मुखर्जी ने बताया कि ए.आई. आधारित पोर्टल से कैसे फार्म स्तर पर प्रबंधन किया जाता है।
उन्होंने सेेटेलाइट एंड फोटोग्राफी एनालिटिक्स के लिए तैयार किए नए शप्तशती पोर्टल का अनावरण करते हुए उसकी खूबियां बताई। एफ.पी.ओ. के अध्यक्ष डॉ. डी.एस. मलिक ने अतिथियों का स्वागत किया। उपाध्यक्ष डॉ. एस.पी. तोमर ने जल प्रबंधन के लिए डी.एस.आर. को अपनाने, समय पर खरपतवार नियंत्रण की विधियां, पैस्टीसाइड फ्री शुद्ध बासमती चावल उत्पादन संबंधी गुर बताए।
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