प्राकृतिक खेती के लिए विस्तार विधियां विषय पर चल रहे पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन
प्रशिक्षण के संयोजक डा. भरत सिंह घनघस ने बताया विस्तार शिक्षा संस्थान नीलोखेड़ी चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वाईस-चांसलर प्रोफेसर बी. आर. कांबोज, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार व कुलसचिव एवं विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल के मार्गदर्शन में उत्तर भारत के कृषि विज्ञानिकों एवं विस्तार अधिकारियों को प्रशिक्षण देने का काम कर रहा है।
करनाल, 29 जुलाई- विस्तार शिक्षा संस्थान नीलोखेड़ी में प्राकृतिक खेती के लिए विस्तार विधियां विषय पर चल रहे पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का रविवार को समापन हुआ। समापन समारोह की अध्यक्षता डा. सत्यकाम मलिक ने की। उन्होंने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि केमिकल फॉर्मिंग से जमीन की उर्वरा क्षमता कम होती है और यह स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए भी नुकसानदायक है। प्राकृतिक खेती इस समस्या के समाधान के रूप में उभरी है। इसलिए हमें समय रहते इस पर विमर्श करना चाहिए।
प्रशिक्षण के संयोजक डा. भरत सिंह घनघस ने बताया विस्तार शिक्षा संस्थान नीलोखेड़ी चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वाईस-चांसलर प्रोफेसर बी. आर. कांबोज, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार व कुलसचिव एवं विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल के मार्गदर्शन में उत्तर भारत के कृषि विज्ञानिकों एवं विस्तार अधिकारियों को प्रशिक्षण देने का काम कर रहा है।
उन्होंने कहा कि इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश एवं बिहार के विस्तार अधिकारियों ने हिस्सा लिया है। डा. भरत सिंह घनघस ने कहा कि प्राकृतिक खेती से मृदा में सुधार होने के साथ-साथ, उत्पादों को बाजार में अधिक दाम मिलता है, इसके अतिरिक्त यह कृषि पद्धति पर्यावरण हितैषी भी है, एवं इसमें खेती के लिए खाद-दवाई पर निर्भरता नहीं रहती इसलिए यह हमारे स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है। उन्होंने प्राकृतिक खेती के मुख्य लाभ जैसे कृषि लागत कम कर किसान को कर्ज मुक्त बनाने में अहम योगदान है क्योंकि इसमें किसी भी बाहरी आदान का प्रयोग नहीं किया जाता है। आज के समय में रासायन युक्त खेती से किसानों को मुक्त करवाने के लिए प्राकृतिक खेती मुक्त करवाने का सबसे अच्छा उपाय है। इसी आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए विस्तार अधिकारियों के लिए इस प्रशिक्षण का आयोजन किया गया है।
इस दौरान चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डा. बलजीत सहारण ने सूक्ष्म जीवों का प्राकृतिक खेती में महत्व एवं भूमिका विषय पर विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती के चार स्तंभ जीवमृत, बीजामृत, वाफसा एवं मल्चिंग हैं। प्राकृतिक खेती में सूक्ष्म जीवों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और ये हर जगह पाए जाते हैं। केमिकल फार्मिंग में कीटनाशकों इत्यादि के छिडक़ाव से ये सूक्ष्म जीव मर जाते हैं जबकि ये सूक्ष्म जीव बहुत ही लाभदायक होते है। प्राकृतिक खेती में इन सूक्ष्म जीवो के माध्यम से पौधे को नाइट्रोजन, फासफोरस एवं जिंक इत्यादि पोषक तत्व मिलते हैं। इनसे मृदा की उर्वरा क्षमता भी बढती है इसके अतिरिक्त ये कृषि अवशेषों को गलाने में भी मदद करते हैं। उन्होंने कहा कि फसल चक्र, मिश्रित फसल एवं इंटर क्रोपिंग इत्यादि विधियां भी प्राकृतिक खेती में महत्वपूर्ण होती हैं। कृषि लागत कम करने, किसानों की आमदनी बढ़ाने में भी प्राकृतिक खेती कारगर है। प्राकृतिक खेती में जो कुछ भी लगता है वह किसान के घर में ही मौजूद है। गाय, गोबर, गौमूत्र, पेड़, की मिट्टी, नीम की पत्तियां, गुड़ व बेसन ये सब किसान के घर में ही रहता है। इन्हीं से जीवामृत व बीजामृत तैयार होगा व प्राकृतिक खेती को बढ़ाया जा सकता है। प्राकृतिक खेती को छोटे खेत में शुरू करने के पश्चात जब अनुभव हो जाए तो धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए एवं पूर्णत: प्राकृतिक खेती को अपनाना चाहिए। प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान प्रशिक्षुओं को केंद्रिय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल एवं प्राकृति खेती प्रशिक्षण संस्थान, गुरूकुल कुरूक्षेत्र का भ्रमण भी करवाया गया।
इस अवसर पर डा. अजय कुमार ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस दौरान डा. जसविंद्र कौर, डा. अनिल कुमार रोहिला सहित सभी प्रतिभागी मौजुद रहै।
What's Your Reaction?